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‘व्यास’ न कथनी और की
‘व्यास’ न कथनी और की, मेरे मन धिक्कार।रसिकन की गारी भली, यह मेरौ सिंगार॥
हरीराम व्यास
पिया मेरे और मैं पिया की
पिया मेरे और मैं पिया की, कुछ भेद न जानो कोई।जो कुछ होय सो मौज से होई, पिया समरथ करें सोई॥
संत सालिगराम
और सकल अघ-मुचन कौ
और सकल अघ-मुचन कौ, नाम उपायहिं नीक।भक्त-द्रोह कौ जतन नहिं, होत बज्र की लीक॥
ध्रुवदास
बारबधू हिय की उमग
बारबधू हिय की उमग, चली सु पति के पास।चित उदार, कहँ रसिकमनि, बोली बचन निरास॥
दौलत कवि
और अरिस्या विरह दुख
और अरिस्या विरह दुख, हिलग अग बड़ दोई।सिखी धूम्र औ ताप बिन, जिमि कहु कदा न होइ॥
दयाराम
श्रवन सु पी गुन रूप की
श्रवन सु पी गुन रूप की, सुनत बात सुख होय।जैसौ बरनै रूप सखि, नैननि राखै गोय॥
दौलत कवि
और प्रसंस लगें न रुचि
और प्रसंस लगें न रुचि, कीनी अति मनुहारि।जेसि मनोहर माधुरी, लगें प्रेम की गारि॥
दयाराम
हिन्दू में क्या और है
हिंदू में क्या और है, मुसलमान में और।साहिब सब का एक है, ब्याप रहा सब ठौर॥
रसनिधि
तरे और कों तारही
तरे और कों तारही, लौकालोहू न्याय।नौका ज्यों पाखान ज्यों, बूडे देत बुडाय॥
दीनदयाल गिरि
और धर्म अरु कर्म करत
और धर्म अरु कर्म करत, भव-भटक न मिटिहै।जुगम-महाशृंखला जु, हरि-भजनन कटिहै॥
चतुर्भुजदास
जिउ स्वप्ना और पेखना
जिउ स्वप्ना और पेखना, ऐसे जग को जान।इन मैं कछु साचो नहीं, नानक बिन भगवान॥
गुरु तेगबहादुर
बाल ज्वानि और बृद्धपन
बाल ज्वानि और बृद्धपन, तीनि अवस्था जान।कहु नानक हरि भजन बिनु, बिरथा सब ही मान॥
गुरु तेगबहादुर
समली और निसंक भख
समली और निसंक भख, अबंक राह म जाह।पण धण रौ किम पेखही, नयण बिणट्ठा नाह॥
सूर्यमल्ल मिश्रण
तीरथ व्रत और दान करि
तीरथ व्रत और दान करि, मन में धरे गुमान।नानक निषफल जात हैं, जिउ कूँचर असनान॥
गुरु तेगबहादुर
तुका और मिठाई क्या करूँ
तुका और मिठाई क्या करूँ, पाले विकार पिंड।राम कहावे सो भली रूखी, माखन खीर खांड॥
संत तुकाराम
अंग मोतिन के आभरन
अंग मोतिन के आभरन, सारी पहिरैं स्वेत।चली चाँदनी रैन में, प्रिया प्रानपति हेत॥
दौलत कवि
ज्यौं अमली की ऊंघतें
ज्यौं अमली की ऊंघतें, परी भूमि पर पाग।वह जानै यह और की, सुन्दर यौं भ्रम लाग॥